“ईसाईयों पर हमलों का कारण धर्म नहीं हैं”|अरुण पन्नालाल|छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फोरम

Spread the love

राजनीतिक विकल्प पैदा करने में ईसाई समुदाय सक्षम हैं, इसलिए हम पर हमले प्रायोजित किए जाते हैं। जमीन से जुड़े मसीही अगुए भलि भांति इस सच्चाई को जानते है। बड़े बडे़ व्यवस्थित चर्च एवं संपन्न वर्ग इस तथ्य से अनजान है। मसीही सताव के विरुद्ध औपचारिक विरोध जताने तक इनकी जिम्मेदारी सीमीत रहती है।

सताव की केन्द्र बिन्दु कहां है?

सामंतवादी विचारधारा, सिर्फ भाजपा में ही नहीं परंतु कांग्रेस में भी दिखती है। वर्तमान काल में संवैधानिक जागरूकता बहुत बढी है। जिसके के कारण ओ.बी.सी. और एस.सी वर्गो में, दोनों राजनीतिक दल अपनी अपनी पैठ खोते जा रहे हैं। जनसांख्यिक बदलाव वोटो के नुकसान में परिलक्षित होता जा रहा है। इसलिए सारा का सारा ठीकरा धर्मांतरण के सिर पर फोड़ा जा रहा है, जो हकीकत से बहुत दूर है।

उपजे शून्य की भरपाई करने सभी दलों ने अपना ध्यान आदीवासियों को हिंदुओं घोषित करने में केन्द्रित कर लिया है। एक पार्टी धर्मनिरपेक्षता की चादर ओढ़े हुए है, दूसरा नफरत फैला के इन्हे मंत्रमुग्ध कर रहें हैं। परंतु दोनों ही खूनी भेडी़ए हैं,सत्ता के लिए किसी को भी फाड़ खाने के लिए तत्पर हैं। पिछले 50 वर्षों से इस दिशा में दोनो दल यही काम किया हैं। सत्तासीन दल छत्तीसगढ़ के आदीवासी आंचल में राम-पथ गमन निर्माण कर रहा है, दूसरा देवगुडी को मंदिर का स्वरूप दे रहा है। आदीवासि पुजारी समाजिक कार्यों में छंदों का प्रयोग करते हैं जिनमें उनके पूर्वजों के नाम का जाप करते हैं। आदीवासी व्यवस्था में सब से ऊंचा दर्जा पूर्वजों को दिया जाता है। कब ब्रहम, विष्णु, महेश जैसे शब्दों ने इन छंदों की जगह ले ली किसी को पता ही नहीं चला।आदीवासी समाज में गणेश पूजा, शिवरात्रि ,रामनौमी आदी त्योहारो को मनाया जाना सामान्य हो गया है। देवगुडीयो में हनुमान चालीसा का पाठ पढना सामान्य हो गया है। दशकों पहले आदीवासी पहचान को खत्म करने, नफरत का कुचक्र बोया और पोसा गया।खामियाजा आज देश भुगत रहा हैं।

आदीवासीयो में मुर्गा लड़वाने की शौकीया परंपरा है। मुर्गा ही जात भाई मूर्गे का खून, तालीययो की गड़गड़ाहट में करता है। ठीक वैसे ही आदीवासी,आदीवासी से लड़ रहा हैं। चाहे नक्सली के नाम पर हो, या कोया बटालियन कहे, हत्या आदीवासी की आदीवासी ही करता है।आपस में लड़वाने के षड्यंत्र प्रायोजित हैं,अब झूठे धर्मांतरण के आरोपों से आदीवासी को आदीवासी से लड़वा रहें है। आदीवासी ही ईसाई आदीवासी का गला काट रहा है।

आरोप धर्मांतरण का है, पर निशाना वोट बटोरना है।

आदीवासियों का धर्मांतरण एक सच्चाई है। ईसाई उन्हें देवगुडी से बाहर एक नई जीवन शैली का विकल्प देते हैं। नशामुक्ति, शांती, भाईचारा और प्रेम की दिशा देते हुए, परंपरा को छोड़कर, भिन्न पहरावे में अलग थलग पडा धर्म परिवर्तित आदीवासी ईसाई खडा हैं। चर्च के लिए ये उपयोगी मात्र गोला बारूद है। नई धार्मिक मान्यताओं में हथियार उठा नहीं सकते, हमला करने की मनाही है। सामाजिक संरक्षण इनके पास नहीं है। सत्ताधारी पक्ष के लिए केवल एक गिनती ही है। परिवर्तित आदिवासी ईसाइयों की समृद्धि और जीवनशैली आकर्षित करती है, पर बहुत ही “साफ्ट टारगेट” है।

ईसाई विश्वास ही सामंतवाद का मुकाबला करने योग्य एक मात्र‌ हौसला एवं हैसियत है। दूसरी तरफ ईसाई समाज बहुत ही कमजोर, राजनीतिक छत्र-छाया के बगैर, असंगठित, अव्यवस्थित, संरक्षण रहित अकेला है। धर्मांतरण के चक्रव्यूह में ईसाईयों को फसना बहुत आसान है। आदीवासियों का धर्मांतरण कर हिन्दू बनाए कोई, और आरोपों के कटघरे में ईसाई समाज खडा किया जाए? सामंतवादी राजनीति को रोकने में सक्षम, ईसाई विचारधारा ही है। ईसाई समाज को बलि का बकरा बना कर अवरोध खत्म करना सामंतियो का प्रयास है।

आदीवासी भाई भाई हैं, वक्त की पुकार समझें। एक दूसरे के खून के प्यासे ना बने। ईसाई समाज संगठित हो, संविधान को जाने और प्यार बांटता रहें। समझो तुम्हें इस्तेमाल किया जा रहा है। सही आदीवासी शक्ति पाने के लिए, दोनों सामंतवादी दलों को पछाड़ना होगा। ईसाई समाज को अपनी राजनीतिक ताकत संग्रहित कर दिखाने का समय आ गया है। सामंतवाद जीत गया तो यह मौका फिर नहीं मिलेगा

~ अरुण पन्नालाल
अध्यक्ष
छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फोरम